दो जून की रोटी


                दो जून की रोटी
गरीब की थाली और माली हालत कुछ ऐसी ही है ?
थाली में अंगाकर रोटी कटोरी में चटनी महंगाई से त्रस्त 
परिवार को है मुखिया से बड़ी उम्मीद  मुखिया चाहता है सबको खुश रखना आशा, विश्वास लेकर है उमंगित 
छोटी -बड़ी आवश्यकता को पूरी करने की कर रहा है। कोशिश  दो जून की रोटी,, के लिए लड़ रहा है। 
धूप - छांव में अभ्यस्त है, अपने काम में ब्यस्त है। 
सुबह से शाम तक बस एक ही उम्मीद लिए 
परिवार की है बड़ी जिम्मेदारी, न रहें बच्चे भूखे 
न गरीबी का अहसास हो सुकून भर सो सकें। 
स्कूल की फीस भर सकें, बाजार से दो समोसे खरीद लें, 
पेड़ की छांव में खेल - कूद लें, यही बड़ी उम्मीद है। 
इस दो जून की रोटी की जुगत में  जीवन पूरी जुड़ी है। 
खामोश है उमंग विश्वास जगी है। 
ज़िंदगी के सपने,दो जून की रोटी की जुटाने में कटी है?
बच्चों के सपने गढ़ते -गढ़ते ,पिता ने कभी सपने देखें हैं?
ज़िंदगी की इस पगडंडियों में बस सपने ही बुने हैं।
लक्ष्मी नारायण लहरे  'साहिल '