सत्याग्रह की भूमि : छत्तीसगढ़ गांधी जयंती पर विशेष
प्रेस छत्तीसगढ़ महिमा रायपुर। 3 अक्टूबर 2021, सन 1869 में जन्मे मोहन दास करमचंद गांधी जी देश सेवा में आने के पूर्व भारत को समझने 50 वर्ष की आयु में परिभ्रमण करते हुए 1920 में छत्तीसगढ़ आए।
यहां की जन मानस सादगी और सत्य के प्रति अटूट निष्ठा संत कबीर दास व संत गुरू घासीदास से प्राप्त किए थे। उसी से प्रेरित होकर गांधी जी अभूतपूर्व सफलताएं अर्जित किए। या यूं कहे कि उनके सत्य ,अहिंसा का पालन और सत्य का प्रयोग इन महान संतो की सीख व दर्शन से अर्जित किए। इस तरह हम कह सकते है कि उनके लिए प्रेरक तत्व रहा। फलस्वरुप वे दो बार 1933 में पुनश्च आए। सतनाम पंथ का तीन बंदर, जिसे वह अपने पास रखते रहा। महंत नैनदास महिलांग गुरु अगमदास का गौरक्षा आन्दोलन , कंडेल नहर सत्याग्रह, पं. सुन्दरलाल शर्मा का कहार व सर्व समाज मंदिर प्रवेश इत्यादि ।
"समाज सुधार के काम सुन्दरलाल कर दे रहिन सुरु
भरे सभा म गांधी सुन्दरलाल ल कहिन अपन गुरु" वे पं.सुन्दरलाल शर्मा को अपना गुरु तक स्वीकारे।
गौरक्षा आन्दोलन 1916 से उत्साहित वे गुरु अगमदास गोसाई और 72 सतनामी संत - महंत से मिले। उन्हे कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में आमंत्रित किए। रायपुर से बलौदाबाजार के सतनामी बेल्ट में इसलिए गये कि यह समाज अवज्ञा के बावजूद अपमान के विष पीकर भी स्वाभिमान व शांतिपूर्वक जीवन निर्वहन करते आ रहे है।
वे भंडारपुरी मोती महल गुरुद्वारा 1820 में स्थापित
तीन बंदरों के शिल्प से प्रभावित हुए। स्वतंत्रता मिलने पर अपने वर्तमान हालात में अपेक्षित बदलाव के सपने संजोये यह वर्ग गांधी जी को हाथो - हाथ लेकर खुलकर उनका सहयोग किया। फलस्वरुप सबसे अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इस समुदाय में मिलते है। अभी भी गांधी जी व उनके सिद्धांत के प्रति आस्था छत्तीसगढ में विद्यमान हैं। हालांकि अन्य कारणों यह सब लेखन में अपेक्षाकृत कमतर है या यहां के मीडिया और लेखक समुदाय उक्त सच्चाई से अनभिज्ञ भी है। परन्तु लोक जीवन में गांधी संस्मरण और दर्शन जो संत कबीर दास व संत गुरू घासीदास बाबा जी के दर्शन से अनुप्राणित है वह,विद्यमान है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती पर उन्हे सादर नमन,
डॉ.अनिल भतपहरी
सचिव छ ग.राजभाषा आयोग रायपुर