छत्तीसगढ़ प्रदेश में अक्ती तिहार के रूप में मनाया जाता है अक्षय तृतीया खासियत दान से परंपरा तक


Akshaya Tritiya 2024: छत्तीसगढ़ में "अक्ती तिहार" के रूप में मनाया जाता है "अक्षय तृतीया", आइए जानें अक्षय तृतीया की खासियत, दान से लेकर परंपरा तक   रायपुर (छत्तीसगढ़ महिमा)। 27 अप्रैल 2024, छत्तीसगढ़ प्रदेश में अक्ति त्योहार अक्षय तृतीया का अच्छा माहौल रहता हैं। इस दिन छत्तीसगढ़ में गुड्डा - गुडिया (पुतरा - पुतरी) की शादी करने की परंपरा है।
इसी दिन से राज्य सभी मांगलिक कार्य के लिए शुभ माना जाता है। अक्ती त्योहार को पुतरा पुतरी की शादी कराई जाने की है।
लोकप्रिय हिंदू त्योहार अक्षय तृतीया को छत्तीसगढ़ में अक्ती तिहार के रूप में मनाया जाता है और वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतिया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष अक्षय तृतीया शुक्रवार 10 मई को है। अक्ती त्योहार मनाने की तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाता है और हर घर में गुड़ियों की शादी किए जाते है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में पुत्र - पुत्री नामक परंपरा का प्रतीक है।
                   परंपरा
मांगलिक कार्य के अलावा किसान इस दिन माटी पूजन दिवस के रूप में मनाते है और किसानों के लिए भी अक्षय तृतीया काफी अहम है। अक्ती त्योहार की मान्यता छत्तीसगढ़ में किसान अपने भरण पोषण और जीवन यापन के लिए अन्न को केवल वस्तु नहीं मानते बल्कि अन्नपूर्णा माता के रूप में उसकी पूजा करते है।
       अक्षय तृतीया हैं खास  
अगले कई महीनो तक लगातार शादियों के लिए शुभ माने जाते हैं। कई मांगलिक कार्य के लिए अक्षय तृतीया शुभ होता है,भारतीय सनातन संस्कृति में अक्षय तृतीया को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार बताया गया हैं कि इस दिन रामायण और महाभारत की कई घटनाएं हुई थी। वैसे तो हर छोटे - बड़े शुभ संस्कार संपन्न करने के लिए पंडित - ज्योतिषियों से मुहूर्त निकलवा जाता है,लेकिन एकमात्र अक्षय तृतीया ही ऐसी तिथि है जिसमें मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होता। ज्योतिष के जानकारों से सलाह लिए बिना ही इस दिन सभी संस्कार पूरे किए जा सकते हैं। इसीलिए अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त और महामुहूर्त की संज्ञा दिए गए है। बिना पंचांग देखे नया व्यवसाय,गृह प्रवेश, मुंडन,जनेऊ, सगाई, विवाह जैसे संस्कार निभाए जाते हैं। खास बात यह है कि इस दिन छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुरूप प्रत्येक घर में गुड्डा - गुड़िया का विवाह रचाने की परंपरा निभाया जाता है,जिसे ग्रामीण अंचलों में पुतरा - पुतरी कहा जाता है। 

गुड्डा - गुड़िया का विवाह रचाने संस्कारों की सीख

छत्तीसगढ़ के गांव - गांव में अक्षय तृतीया को छत्तीसगढ़ में 'अक्ती' के नाम से जाना जाता है। अक्ती पर्व मनाए जाने की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाता है, जिस परिवार में विवाह योग्य युवक - युवती होते हैं, उनका विवाह प्राय: अक्षय तृतीया के महामुहूर्त में ही संपन्न किया जाता है। यदि युवक - युवतियों का विवाह न हो तो उस परिवार के छोटे बच्चे अपने गुड्डा - गुड़िया का विवाह रचा कर खुशियां मनाते हैं। बच्चों की खुशियों में परिवार के बड़े - बुजुर्ग भी शामिल होते हैं। पुतरा - पुतरी का नकली विवाह रचाने के जरिए बच्चों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति में निभाए जाने वाले संस्कारों की जानकारी दिया जाता है ताकि बच्चे जब बड़े हो जाएं तो उन्हें पहले से संस्कारों की जानकारी हो। इन संस्कारों में तालाब से चूलमाटी लाने की रस्म,तेल, हल्दी लगाने,सिर पर मौर - मुकुट बांधने,फेरे लेने,बिदाई आदि रस्मों के बारे में सिखाया जाता है।

कुंडली में मुहूर्त ना हो तो इस दिन विवाह

महामुहूर्त अक्षय तृतीया के बारे में यह प्रचलित है कि यदि विवाह योग्य युवक - युवतियों की कुंडली के हिसाब से विवाह मुहूर्त नहीं निकल रहा है। ऐसी स्थिति में अक्षय तृतीया पर विवाह करना शुभ फलदायी माना जाता है।                अन्य संस्कार

विवाह के अलावा जनेऊ संस्कार, बच्चों का मुंडन संस्कार, सगाई, गृह प्रवेश, भूमि पूजन जैसे अन्य संस्कार भी इस दिन किए जा सकते हैं।

      सोना खरीदने की परंपरा

इस दिन सोना खरीदने की परंपरा भी है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर स्वर्ण,रजत, हीरा आदि धातुएं घर में लाने से वह हमेशा के लिए अक्षय हो जाता है अर्थात परिवार में सुख,समृद्धि बढ़ता है।

     पर्रा,सूपा, टोकरी की खरीदारी

अक्षय तृतीया के दिन घर में पर्रा, सूपा, टोकनी, दूल्हा-दुल्हन के लिए साफा, पगड़ी,तोरण, कटार, पूजन सामग्री की खरीदारी करना शुभ माना जाता है।

      दान का महत्व

अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में दान करने की परंपरा निभाया जाता है। वैशाख माह में प्रचंड गर्मी पड़ता है, पशु - पक्षी, इंसान सभी गर्मी के मारे परेशान होते हैं। निर्धनों,जरूरत मंदों को राहत देने के लिए मिट्टी का घड़ा, फल,जल,अनाज,नमक,घी,शक्कर,वस्त्र, पैरों को जलन से बचाने जूता,चप्पल आदि चीजों का दान करना उत्तम माना जाता है। इस दिन किए गए दान का हजार गुणा फल मिलता है। 

 जैन धर्म में आखातीज

जैन धर्म के तीर्थंकर ने इसी दिन इक्षु रस यानी गन्ना रस का पान करके अपने व्रत का पारणा किया था। जैन धर्म के लोग इसे आखातीज के नाम से मनाते हैं। विशेष तरह की खिचड़ी का भोग लगा कर परिवार के लोग खिचड़ी खाने की परंपरा निभाते हैं। खिचड़ी के भोज के लिए विशेष रूप से रिश्तेदाराें को आमंत्रित किया जाता है।