भरथरी लोक गायिका सुरुज बाई खांडे स्मृति दिवस विशेष

 बिलासपुर (छत्तीसगढ़ महिमा)। 02 मार्च 2023,
सुरुज बाई खांडे छत्तीसगढ़ की विख्यात भरथरी गायिका थीं। वे अहिल्या बाई सम्मान से सम्मानित थीं। उन्होने 7 साल की उम्र से भरथरी गाने की शुरुआत अपने नाना स्वर्गीय राम साय घितलहरे के मार्गदर्शन में किया था। उन्होने रूस, दुसाम्बे,अमला के अलावा लगभग 18 देशों में अपनी कला की प्रस्तुति दी थी। इसके साथ ही देश में भोपाल, दिल्ली, इंदौर, सिरपुर, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे लगभग सभी राज्य में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकीं थी। सूरूज बाई को लोक कलाकार के तौर पर एसईसीएल में चतुर्थ कर्मचारी वर्ग में नौकरी दी गई थी। लेकिन कुछ वर्ष पूर्व मोटर साइकिल से दुर्घटना होने के कारण नौकरी करना संभव नहीं रहा था, इसलिए उन्हें नौ साल पहले ही सेवानिवृत्ति ले ली थी।
 भरथरी की लोक गायिका सुरुज बाई खांडे पद्मश्री की आस लिए 10.03.2018 दिन शनिवार को संसार विदा हो गईं। इसके साथ ही भरथरी गायिका का अनोखा अंदाज भी अंधेरे में खो गया। मृत्यु के अंतिम क्षणों तक पद्मश्री नहीं मिलने का दर्द रहा। वे अपने अंतिम पलों में इस सम्मान को लेकर अपने पति से चर्चा करती रहीं। भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे को वैसे तो अनेक पुरस्कार मिले हैं। इसके बाद भी उन्हें पद्मश्री मिलने की आस थी। उनके पति लखन लाल खांडे ने बताया कि हर साल उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता था कि शायद इस बार मेरा नाम पद्मश्री के लिए चयनित होगा लेकिन जब नामों की घोषणा होती तो उन्हें निराशा ही हाथ लगती। वे हमेशा ही कहती थीं कि सरकार साहित्य,रेडियो,फिल्म सहित अनेक क्षेत्र में पद्मश्री देती है लेकिन देश की लोक विधा और उसमें स्थापित कलाकारों की सुध क्यों नहीं लेती है। शनिवार सुबह भी उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पलों में अपने पति से यही दर्द बयां किया और कहा कि सरकार तो ध्यान ही नहीं दे रही है। शायद इस साल कोई मेरी भी सिफारिश कर दे तो मेरे जीवन की अंतिम इच्छा देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक मिल सके और मैं भी तिरंगे में संसार से सम्मान विदा हो सकूं। लेकिन उनकी यह आस अधूरी ही रह गई। उन्होंने सुबह 10:30 बजे तक घर का सभी काम को पूरा की।
इस बीच अचानक ही सीने में दर्द होने की बात कही। इसके बाद आनन-फानन में पास के अस्पताल में ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने प्रारंभिक जांच के बाद हृदय गति रुकने से मौत होने की जानकारी दी। सुरुज बाई का चमकदार सितारा अस्त होते ही लोक गायिका का भी खूबसूरत अंदाज भी लुप्त हो गया। सुरुज बाई को बालपन से ही गायकी में रुचि थी। उनका जन्म 12.06.1949 को नगर पंचायत सरगांव विकास खंड बिल्हा के ग्राम पौंसरी जिला बिलासपुर में मजदूर परिवार में हुआ था।
            संघर्ष ने भी नहीं तोड़ा
10 - 11 साल की उम्र में उनकी शादी कछार - रतनपुर में लखन लाल खांडे के साथ हुई। उनके 4 बच्चों की मृत्यु इलाज के अभाव में हो गई। इस बीच वे रोजी मजदूरी की तलाश में पति के साथ बिलासपुर आ गईं और वे सरकंडा में रहने लगी। उनके पति को भी गाने - बजाने का शौक था। शुरुआती दौर में दोनों मजदूरी करने लगे। साथ ही अपने गायकी के हुनर को भी जिंदा रखा। कड़े संघर्ष के बाद भी उनकी हिम्मत नहीं टूटी और भरथरी में अपनी पहचान बना पाने में वे सफल रहीं।
     "स्मृति दिवस पर सुरुज के सुरता कार्यक्रम 
          चक्रभाठा बिलासपुर में आयोजित"
अन्तर्राष्ट्रीय भरथरी गायिका रागिनी सुरुज बाई खाण्डे कि 10 मार्च 2023 को 6 वी पुण्यतिथि के अवसर पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी स्मृति में उत्तम भवन रेल्वे स्टेशन रोड ओवरब्रिज के पास चकरभाठा बिलासपुर में कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। जिसमें मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ.आर.एस.बारले,पद्मश्री अजय मण्डावी तथा अध्यक्षता धरमलाल कौंशिक विधायक बिल्हा करेंगे। साथ ही छत्तीसगढ़ में अलग - अलग विधाओं में काम करने वाले चयनित लोक कलाकारों, साहित्यकार एवं खिलाड़ियों को सुरुज सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। डॉ.सोमनाथ यादव संस्थापक बिलासा कला मंच के द्वारा उद्बोधन के रूप में सुरुज बाई खाण्डे के जीवन पर प्रकाश डालेंगे साथ ही साथ लोक गायिका जोशी बहने एवं सतनाम जागृति गीत के स्वर सम्राट यशवंत सतनामी का सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुति किया जाएगा ।