सतनाम संकीर्तन कार सुकाल दास भतपहरी (गुरुजी) को दी गई श्रद्धांजलि

 छत्तीसगढ़ महिमा पलारी। 20 अगस्त 2022,
    (जन्म 20-8-1948, निर्वाण - 4-12-2000 )
   बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी सतलोकी सुकाल दास भतपहरी (गुरुजी) के नाम से विख्यात थे। वे एम.ए. बीएड शिक्षा प्राप्त उच्च श्रेणी शिक्षक के रुप सेवारत हो गीत भजन कविताएँ एंव नाटक प्रवचन द्वारा सामाजिक व सांस्कृतिक रुप से जन जागरण करते रहे। वे बैंजो हारमोनियम,बासुरी, वादन,अभिनय आदि में दक्ष थे। चोहल चरन दास चोर मे चरनदास का जीवंत अभिनय से दर्शक सम्मोहित सा हो जाया करते थें। 
 उनकी ख्यातिनाम प्रकाशित रचना है गुरु घासीदास के जीवन दर्शन पर आधारित "सतनाम संकीर्तन " ( रचना 1968 -70) इसके माध्यम से अपने चाचा महंत नंदू नारायण भतपहरी व मामा मंत्री नकूल ढ़ढ़ी के सामाजिक आन्दोलन में सक्रिय रहे और जन जागरण के गीत भजन प्रस्तुत करते रहे हैं। आगे चलकर " नवरंग नाट्यकला मंच" की स्थापना  (1975 ) में कर समाज सुधार व व्यसन आदि के विरुद्ध जनान्दोलन भी चलाए ...
परिणाम स्वरुप समकालीन समय में बुन्देली ( पिथौरा) में स्थापित शराब कारखाना को बंद कर वहाँ से शासन प्रशासन को हटवाना पड़ा। इस आन्दोलन का सूत्र उनकी बहु चर्चित नाटक " हाय रे नशा " और  "संगत " रहा है। स्कूली छात्रों और शिक्षकों की सहयोग से उन्होंने असंभव सा कार्य कर जन मानस में अभूतपूर्व ख्याति अर्जित किए। वे सामाज सापेक्ष कार्य अपनी रचनात्मक प्रतिभा से करते रहे हैं।
    आज पावन जयंती पर उन्हें शत शत नमन‌ 
             " बाबू जी "
अन्त:करण में उठ रहे भाव को कैसे करे काबू जी। 
याद आ रहे है बाबू जी,याद आ रहे  है बाबू जी।
समर्पित करते श्रद्धांजलि हसरते उठते बेकाबू जी।
याद आ रहे हैं बाबू जी,याद आब रहे हैं बाबू जी। 
उंगली थाम कर कुछ डग भरे ऊंची - नीची राहे।
मुझे बढ़ते देख कर खिल जाते  उनकी बांछे।
किये सदा सामंजस्य कर्तव्य और घर - परिवार।
सादा जीवन उच्च विचार आपके जीवन का सार।
विराट व्यक्तित्व आपका पर सहजता से भरा हुआ।
गीत संगीत अभिनय हर रंग से रंगा व सजा हुआ।
बहुतों को देखा प्रफुल्लित आपके  शरण में। 
झुकता मस्तिष्क बडा बडा आपके श्रीचरण में। 
विकास की सपने संयोये सफर छोटे गांव से। 
भ्रमण कर देश भर बसे रहे जुनवानी गांव में।  
 विषमताओ के मध्य जीवन उज्जवल तेरा। 
संघर्ष   आपका ही  रहा   सदैव संबल मेरा। 
जनक ही नही गुरु है मेरा दिया अप्रतिम ज्ञान मुझे।
ऊऋण होंउ तो होऊ कैसे इनका नही है भान मुझें।
ग्यान ही शक्ति है कह कहते अर्जित करो उनकी भक्ति। 
सद्गुण और सद् व्यवहार है सफलता उनकी है सूक्ति।
प्रशस्ति गान आपके करु तो मै करु कैसे।
जतन कर ओढी चदरिया जस की तस धर दीनी जैसे।
महकता रहे स्नेह पिता का श्री सुकालदास। 
फूल मुरझा जाते है बाकी रह जाते है सुवास।
     डा.अनिल भतपहरी
 9617777514