निर्जला एकादशी व्रत विधि एवं महत्व: शेषाचार्य महाराज

 छत्तीसगढ़ महिमा महासमुंद। 10 जून 2022,
वर्षभर में चौबीस एकादशी आती हैं। इनमें निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। क्योंकि महर्षि वेदव्यास के अनुसार भीमसेन ने इसे धारण किया था। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से ही साल में आने वाली समस्त एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है।
 इस व्रत में सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल भी न पीने का विधान होने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना का विधान है। इस व्रत से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
   निर्जला एकादशी व्रत पूजा विधि जो श्रद्धालु वर्ष भर की समस्त एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं उन्हें निर्जला एकादशी का उपवास अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इस व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
 इस व्रत की विधि इस प्रकार है - 1. इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।
2. एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान के बाद सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। 
इसके पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
3. इस दिन भक्ति भाव से कथा सुनना और भगवान का कीर्तन करना चाहिए।
4. इस दिन व्रती को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफेद वस्त्र को उस पर ढक कर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रख कर ब्राह्मण को दान दें।
इसके बाद दान,पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। धार्मिक महत्त्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र,स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है।
        "निर्जला एकादशी पर दान का महत्व"
यह एकादशी व्रत धारण कर यथाशक्ति अन्न,जल,वस्त्र, आसन,जूता,छतरी,पंखी तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जल कलश का दान करने वालों श्रद्धालुओं को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाता है तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलता है। 
श्रद्धा पूर्वक जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है,वह समस्त पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद प्राप्त करता है।
        "निर्जला एकादशी व्रत कथा"
महाभारत काल के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- हे परम आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं व मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं भूख नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है। भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- ‘’पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशी आती हैं उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है।’’
महर्षि वेद व्यास के वचन सुनकर भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने लगे और पाप मुक्त हो गए।