महासमुंद (छत्तीसगढ़ महिमा)। 26 अप्रैल 2024, छत्तीसगढ़ का जिले महासमुंद के विधानसभा क्षेत्र खल्लारी वह दैव स्थल हैं जहां ऊँचे लंबे पहाड़ी में चड़ कर महाभारत काल के पांडवों ने खल्लारी माता की पूजा किया था। छत्तीसगढ़ का खल्लारी मंदिर में नवरात्र के समय हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ लगता है। यह मंदिर का अपना एक अलग ही मान्यता है। छत्तीसगढ़ के उस धार्मिक स्थल के बारे में जहां पांडवों ने ऊंची पहाड़ी चड़ कर खल्लारी माता के मंदिर में पूजा करने पहुंचे हुए थे। छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थिल माता खल्लारी का मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है,कहा जाता है कि महाभारत काल के दौरान यहां पांडव पहुंचे हुए थे। यहां उन्होंने माता जी की पूजा आराधना किया था। नवरात्र का पावन पर्व की शुरूआत हो कर खत्म हो गए है, तो भी माता खल्लारी के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ता रहता है। माता खल्लारी का अपना एक अलग विशेष महत्व है। माता खल्लारी का ये मंदिर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर खल्लारी पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। प्राचीन काल में इस स्थान को खल वाटिका के नाम से जाना जाता था। माता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 850 सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है। लेकिन अब लोगों के सुविधा के लिए रोप - वे लगाया जा चुका है। जिसके माध्यम से लोग माता के दर्शन के लिए पहुंचते रहें हैं। यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग दूर - दराज से माता के दर्शन करने के लिए पहुंच रहें हैं। ऐसा माना जाता है कि जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं वह संतान प्राप्ति की मनोकामना के लिए ना सिर्फ माता के दर्शन करती हैं बल्कि यहां पर मनोकामना ज्योति प्रज्वलित कर जातें हैं। खल्लारी माता मंदिर में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ता है। नवरात्रि के दिनों में मंदिर में माता के दर्शन के लिए आस पास के भक्तों के साथ ही दूसरे राज्यों से भी लगभग 30 से 35 हजार श्रद्धालु हर रोज पहुंचते हैं। चैत्र पूर्णिमा के दिन खल्लारी में मेला महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग लाखों की संख्या में पहुंचते हैं। खल्लारी को प्राचीन काल में खल वाटिका के नाम से जाना जाता था, खाल वाटिका हैंयवंश राजा ब्रह्मदेव की राजधानी थी। जिसका उल्लेख रायपुर और खल्लारी में मिले शिलालेख में मिलता है। राजा ब्रह्मदेव के शासन काल में चौदहवीं शताब्दी में 1415 ईस्वी में बनाया गया था। वहीं इतिहास में वर्णित यह स्थान अपनी वैभवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है। वहीं स्थानीय लोगों की मानें तो मां खल्लारी महासमुंद के बेमचा में निवास करती थी और माता यहां कन्या का रूप धारण करके खल्लारी में लगने वाले हाट बाजार में आती थी। इसी दौरान खल्लारी बाजार में आया एक बंजारा माता के रूप पर मोहित हो गया और उनका पीछा करते हुए पहाड़ी पर पहुंच गया। जिससे माता बुरी तरह से क्रोधित हो गई और उन्होंने बंजारे पर अपने शास्त्र से प्रहार किया जिससे वह बंजारा पत्थर में परिवर्तित हो गया जिसके बाद माता खुद भी वहां विराजमान हो गई। महासमुंद जिले पूरे वनो से अच्छादित हैं चाहुओर हरे भरे पेड़ फूलों पहाड़ो की मनोरम दृश्य लोंगो को अपने ओर आकर्षित कर लेता हैं। आस पास नदी नाले तालाब के साथ रवि फसल खेतों में हरियाली होने से यहां गर्मी का ज्यादा प्रभाव नहीं होने से ग्रीष्मकालीन में अधिकतर वैवाहिक कार्य चलते रहते हैं। वर वधु और उनके परिजन के साथ माता खल्लारी मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद लेने आते रहते हैं।