छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद ममतामयी मिनीमाता (अंतरराष्ट्रीय विश्व महिला दिवस विशेष)


रायपुर (छत्तीसगढ़ महिमा)। 08 मार्च 2023,
मीनाक्षी देवी उर्फ मिनीमाता स्वतंत्र भारत में सन् 1952 में छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद बनी। उन्होंने देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य की। छुआछूत मिटाने के लिए उन्होंने इतना कार्य किया कि मिनीमाता को लोग मसीहा के रुप में देखा करते थे। उनके निवास स्थान में प्रत्येक श्रेणी के लोग आवागमन करते रहे थे और मिनीमाता उनकी समस्याओं को दूर करने में पूर्ण मदद करती थीं। ऐसा कहते हैं कि जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में रहती थीं तो उनका वास स्थान एक धर्मशाला आश्रय लेकर जैसा होता था। छत्तीसगढ़ से जो भी दिल्ली में आता, वह निशचिंत रहता कि मिनीमाता का निवास तो है। ठंड के दिनों में मिनीमाता ध्यान रखतीं कि कोई भी ठंड से परेशान न हो। अगर किसी को देखतीं कि ठंड से सिकुड़ रहा है तो उसको कंबल से ढंक देतीं। एक बार तो ऐसा हुआ कि उनके पास खुद को ओढ़ने के लिए कंबल नहीं रहा। बहुत ज्यादा ठंड हो रही थी तब मिनीमाता ने एक सिगड़ी जला कर खाट के नीचे रख दिया पर सिगड़ी का धुँआ पूरे कमरे में भर गया और बहुत ज्यादा घुटन हो गई, जिसके कारण मिनीमाता बेहोश हो गईं। कई दिन तक चिकित्सा चलने के बाद उनकी स्वास्थ्य ठीक हो पाई। ऐसी थीं ममतामयी मिनीमाता की जन सेवा भाव कार्य। मिनीमाता का नाम मीनाक्षी देवी था। वे कैसे मीनाक्षी से मिनीमाता बनी, यह जानने के लिए हमें उनके अतीत को जानना पड़ेगा। मीनाक्षी देवी रहती थीं आसाम में अपनी माँ देववती के साथ। देववती जब छोटी थीं, तो वे छत्तीसगढ़ में रहती थीं। उनके पिताजी सगोना नाम के गाँव में मालगुज़ार थे। छत्तीसगढ़ में सन् 1897 से 1899 तक अकाल पड़ा जो इतना भयंकर था कि लोग उसे "अकाल" के नाम से जानने लगे थे। देववती तब बहुत ही छोटी थीं। उनकी और दो बहनें थीं। एक उनसे बड़ी दूसरी उनसे छोटी। तीन बेटियों को लेकर उनके पिता - माता शहर बिलासपुर पहुँचे। वहाँ उन्हें आसाम के एक ठेकेदार मिले जो मज़दूर भर्ती करने वाले थे। उनके साथ देववती के पिता सपरिवार आसाम जाने के लिए तैयार हो गए। देववती की दोनों बहनें आसाम नहीं पहुँच पाई। बड़ी बहन मती ट्रेन में ही चल बसी। उस नन्ही-सी बच्ची को गंगा में अपंण करना पड़ा और छोटी बहन जिसका नाम चांउरमती था, उनको पद्मा नदी में। किसी तरह तीनों मिल कर जब आसाम पहुँचे, तब पिता-माता दोनों चल बसे। देववती बीमारी से तड़प रही थीं, उसे किसी ने अस्पताल में भर्ती कर दिया। ठीक होने के बाद देववती अस्पताल में ही रह गईं। नर्सो ने उन्हें बड़े प्यार से बेटी के रुप में पाला। उसी देववती की बेटी थीं मीनाक्षी देवी। आसाम में उन्होंने मिडिल तक की पढ़ाई की। सन् 1920 उस वक्त स्वदेशी आन्दोलन चल रहा था। छोटी सी मिनीमाता स्वदेशी पहनने लगी। विदेशी वस्तुओं की होली भी जलाई।
उस वक्त गुरु गद्दीनसीन अगमदास जी सतनाम पंथ के धर्म का प्रचार करने आसाम पहुँचे थे। वहाँ मिनीमाता के परिवार में ठहरे थे। उन्होंने मिनमाता के माताजी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। इसी प्रकार मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गई और छत्तीसगढ़ वापस आई।
   "अगमदास गुरु राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग ले रहे थे। 
उनके रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बना"
  पं.सुन्दर लाल शर्मा, डॉ.राधा बाई, ठाकुर प्यारे लाल सिंह सभी उनके घर में आते थे। अगमदास गुरु के कारण ही पूरे सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया।
   मिनीमाता सब के लिए माता समान थीं। वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थीं, जिनका कोई नहीं है जिन पर समाज दबाव डाल रहा है। जो कोई भी परेशानी में होता, मिनीमाता के पास आ जाता और मिनीमाता को देख कर ही उन के मन में शांति की भावना छा जाती हैं। अनेक लोग यह कहते कि क्या जो जन्म देती है,वही माँ है? माँ तोे वह है जिसे देखते ही ऐसा लगे कि अब और किसी बात का डर नहीं। अब तो माँ है हमारे पास। सन् 1951 में अगमदास गुरु का देहान्त हो गया। मिनीमाता पर अगमदास जी गुरु की पूरी ज़िम्मेदारी आ पड़ी। घर सँभालने के साथ - साथ समाज का कार्य करती रही पूरी लगन के साथ। उनका बेटा गुरू।विजय कुमार तब कम उम्र का था। 1952 में मिनीमाता छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद बनी। तब से उनकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई। ऐसा कहते हैं कि हर काम को जब तक पूरा नहीं करतीं, तब तक वे चिन्तित रहती थीं।
नारी शिक्षा के लिए मिनीमाता खूब काम करती थीं। सभी को कहती थीं अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए। बहुत सारी लड़कियाँ उनके पास रहकर पढ़ाई करतीं। जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए ऊँची शिक्षा का बन्दोबस्त करतीं, उन लड़कियों में से आज डॉक्टर,न्यायधीश,प्रोफ़ेसर हैं। छत्तीसगढ़ साँस्कृतिक मंडल की मिनीमाता अध्यक्ष रहीं। छत्तीसगढ़ कल्याण मज़दूर संगठन जो भिलाई में है, उसकी संस्थापक अध्यक्ष रहीं। बांगो- बाँध मिनीमाता के कारण ही सम्भव हुआ था।मिनीमाता का सभी धर्मों के लिए समान आदर भाव था। मिनी माता सभी से यही कहती थीं कि लोगों का आदर करें,सम्मान करें।मिनीमाता छत्तीसगढ़ राज्य के आन्दोलन में शुरु से ही सक्रिय हिस्सा लेती रही थीं।
सन् 1972 में एक वायुयान भोपाल से दिल्ली की ओर जा रहा था। मिनीमाता भोपाल में अपने बेटे विजय के पास आई थीं। उसी वायुयान से दिल्ली वापस जा रही थीं। उस वायुयान में चौदह यात्री थे। वह वायुयान दिल्ली नहीं पहुँच पाया,उसी दुर्घटना में हमारी मिनीमाता भी अपना काम अधूरा छोड़ कर चली गयीं। छत्तीसगढ़ में लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि मिनीमाता अब उनके बीच नहीं रहीं। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य निर्माण के बाद महिला उत्थान के क्षेत्र में मिनीमाता सम्मान स्थापित किए गए हैं और मिनीमाता अमृत नल जल योजना, मिनीमाता महतारी जतन योजना संचालित किया जा रहा हैं। मिनीमाता के सुपुत्र गुरू विजय कुमार जी मध्यप्रदेश शासन में मंत्री रहे और गिरौदपुरी धाम मेला के अध्यक्ष व गिरौदपुरी धाम और अगमधाम खडूवापूरी के गुरू गद्दी आसीन हैं। उनके पुत्र गुरू रूद्र कुमार लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं ग्रामोद्योग विभाग छत्तीसगढ़ शासन में केबिनेट मंत्री हैं।