वैचारिक परिचर्चा मत अपना - अपना

        
          के.के. एस. बंजारे सरसिंवा/ बिलाईगढ़       छत्तीसगढ़ महिमा। 14 अगस्त 2022,
किसी भी व्यक्ति या परिवार की संपन्नता या विपन्नता का सीधा संबंध उस व्यक्ति या परिवार के आर्थिक स्तर से होता है। उस व्यक्ति या परिवार की सांसारिक सफलता या विफलता पर उसकी आर्थिक स्तर या परिस्थिति का भी अहम योगदान होता है। इसलिए उस व्यक्ति या परिवार की सांसारिक सफलता अर्थात आर्थिक समृद्धि,ख्याति तथा उपलब्धि आदि के पीछे उसकी आर्थिक स्थिति या परिस्थिति या विरासत का भी सीधा-सीधा योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता।
हमें बहुत से सफल लोगों के बारे में यह बताया जाता है या पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति बीहड़ गांव से उठकर, जहां स्कूल - कॉलेज, सड़कें, बिजली, बैंक और पोस्ट ऑफिस नहीं हुआ करते ऐसे गांव से उठकर सफलता हासिल की है।
तो उस जमाने में तो शिक्षा का उतना विस्तार या लोक व्यापीकरण अन्य मूलभूत विकास नहीं हुए थे। तो यह स्वाभाविक ही है कि गांव में स्कूल,सड़के,बिजली न रही हो। जबकि आज भी हर एक गांव में मिडिल,हाई,हायर सेकेंडरी,कॉलेज और यूनिवर्सिटी इत्यादि नहीं है और वह भी उन सफल ख्याति नाम विकास पुरुषों के होते हुए भी। ....खैर स्वाभाविक रूप से संभव भी नहीं है।
 मुझे इस प्रकार की बातें उतना  प्रभावित नहीं करता जैसा कि बताया जाता है। 
क्योंकि यदि गांव में स्कूल ना हो तो आर्थिक संसाधन के बल पर दूर शहरोें या कस्बों में जा कर भी पढ़ाई संभव हो सकता है और होता है। सड़कें नहीं होती तो कम से कम अपने स्वयं के संसाधनों से पगडंडी तो बनाया ही जा सकता है और बनाते भी थे लोग। बिजली नहीं हुआ करती थी तो उसके विकल्प के रूप में तेल दिया बाती तो आसानी से आर्थिक संसाधन के बल पर उपलब्ध हो जाया करते थे। कोई 1000 एकड़ जमीन के मालिक है, तो कोई 100 एकड़ जमीन के मालिक है,तो कोई आधा एकड़ जमीन के मालिक है तो भी वह किसान है और जिनके पास कोई जमीन नहीं है वह तो केवल मजदूर है और इन सब की हालातों पर आसानी से विचार किया जा सकता है ।
इसलिए सक्षम लोगों की सफलताओं में वह संघर्ष कहां जितना कि विपन्नता के मापदंड के न्यूनतम स्तर से जीवन बसर कर रहे व्यक्ति या परिवार संघर्ष किया करते हैं। अब आप ऐसे लोगों की संघर्ष की कल्पना करिए जिसके पास खाने के लिए अनाज ना हो,आय का समुचित स्रोत ना हो। ....और यदि ऐसे लोग किसी सफलता या उपलब्धि या ख्याति अर्जित करते हैं तो मैं ऐसे लोगों की सफलताओं उपलब्धियों और ख्यातियों को उन संपन्न लोगों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ सफलता मानता हूं। 
यहां यह उल्लेखनीय है कि सभी गांवों या नगरों  में सक्षम  लोग कमजोर लोगों को उनकी यथास्थिति में बने रहना देखना पसंद करते हैं और येन- केन प्रकारेण उन संघर्षरत लोगों की राहों में रोड़े भी अटकाया करते हैं।
क्योंकि मुझे आर्थिक रूप से सक्षम लोगों की सफलता की दास्तां न ही आकर्षित और ना ही प्रेरित करते है।  मुझे आकर्षित और प्रेरित तो उनकी दास्तानें करते हैं जो विपन्नता के मापदंड के न्यूनतम स्तर में अपनी जिंदगी बसर कर सफलताओं की उपलब्धियों को हासिल करता है।
मेरे इस विचार को देश के ख्याति नाम महापंडित महा विद्वान राहुल सांकृत्यायन के ये शब्द संपुष्ट करते हैं -
      "ऊंची जाति में जन्म लेकर जातीय श्रेष्ठ हो जाना, 
धनी व्यक्ति के घर जन्म लेकर धनवान हो जाना,
 गुणी व्यक्ति के घर पैदा हो कर गुणवान हो जाना
 उतना महत्व और गौरव का विषय नहीं जितना कि किसी अछूत,दीन - हीन गरीब परिवार में जन्म लेकर प्रकांड विद्वान हो जाना है और इसमें बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर शत प्रतिशत खरा उतरते हैं।