दुखद एक संस्मरण
मेरे जीवन और परिवार का सबसे दुखद दिन 25 अक्टूबर 2018 - लक्ष्मी नारायण लहरे
फिर लौटकर नहीं आये बाबू जी बाबू जी और माँ मामा घर गए गए थे वहां से लौटकर खेती किसानी की काम में ब्यस्त हो गए थे गुलाबी हल्की ठंठ पड़ रही थी खेतों में पानी सुख गया था बाबू जी चिंचित थे ।खेतों में पानी की ब्यवस्था तालाब से सिंचाई के लिए पम्प खेत में कराए पानी सिंचाई हो रही थी। 25 अक्टूबर 2018 रात करीब 7 -8 बजे बाबू जी से मेरी बात हुई खेत मे पानी पल रही है बताए तब बाबू जी से मैं बोला ठीक है और वहां जाने की जरूरत नहीं है बाबू जी भोजन कर फिर खेत की ओर घूमने निकल पड़े। बाबू जी अक्सर घर से निकलते थे तो हमेशा की तरह अपने मित्र मंडली में बैठ जाते थे और अक्सर लेट में आते थे । उस दिन में 12 बजे रात के आस पास सो गया था ।तब बाबू जी नहीं आये थे ।तब 1 बजे आस पास मेरा मंझला भाई खेत तरफ गया तब तालाब के मेढ़ पर बाबू जी मूर्छित पड़े थे ये खबर जब मुझे हुआ मेरे पैरो तले से मानो जमीन खिसक गई मां की चीत्कार सुन डर गया और फिर हम चारों भाई खेत के तरफ दौड़े देखा बाबू जी बेहोस थे आनन - फानन में इलाज के लिए सारंगढ़ चले गए डॉक्टर अपनी प्रारंभिक ईलाज शुरू किए icu में जांच चल रही थी कुछ समझ नही आ रहा था बस मन ही मन बाबू जी ठीक हो जाएंगे बड़ी उम्मीद थी ।रात कट गई सुबह हुई पर होस में नहीं आये बाबू जी यह पल मन को झिझोड़ कर रख दिया ।सारी बाते अपने डा फूफा जी को दिया पर कुछ खास उत्तर नहीं मिला सुबह राधा कृष्ण अस्पताल से रायपुर के लिए मन बनाये और सुबह से एम्बुलेंस की खोज में लग गए पर दोपहर तक सारंगढ़ में एम्बुलेंस नहीं मिला जैसे तैसे राधा कृष्ण का ही एम्बुलेंस मिला बड़ी मुश्किल से छोटा भाई रायपुर बाबू जी को लेकर गए ।उस एम्बुलेंस में मरीज होने के बाद भी बहुत सारे समान उस डॉक्टर ने एम्बुलेंस में डाला वह पल बहुत ही दुखद रहा। 26 अक्टूबर को मेका हारा रायपुर में भर्ती कराए तब तक रात के 8 बज चुके थे माँ और भाई साथ में थे बहुत कठिन समय था। 27 अक्टूबर को मैं रायपुर पहुंचा। तब छोटे भाई अपने गांव वापस आ गया उस समय रायपुर में मैं और मामा जी थे पूरी तरह से टूट गया था मुँह में पानी भी मुझे पीना दुस्वार लग रहा था बड़ी मुश्किल से रात और दिन कट रहे थे बाबू जी वेंटिलेटर में थे उनके बिस्तर के आस पास बहुत सारे मरीज थे जो मौत से जूझ रहे थे उस हाल में भी बाबू जी थे चारों तरफ बस शांत बाबू जी को बार बार देखता रहता था कि होन्स में अब आ जाएंगे बड़ी उम्मीद थी। 28 अक्टूबर को बाबू जी के पैर में कुछ हल चल हुई उस समय मैं करीब बैठा था मन को लगा कि अब होन्स में आ जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ रात के 8 बजे आस पास बाबू जी के सामने वाले बिस्तर के मरीज का तबियत बिगड़ा तब डिवटी में उपस्थित डॉक्टर ने बड़ी मुश्किल से उसे बचाया। उस दिन रात भर मेरी नींद टूट गई नहीं सो पाया बस नई उम्मीद से जगता रहा।डॉक्टरों से बार बार पूछता कुछ कीजिये पर उत्तर कुछ नहीं मिलता था बस उम्मीद ही था जो मुझे वहां बिठा रखा था। 29 अक्टूबर की शाम डॉक्टर बाबू जी का बीपी ,सुगर जांच किये कुछ भी ठीक नहीं है बोले शाम ढल चुकी थी मैं बहुत परेशान था 6 बजे आस पास बाबू जी के बगल में जो युवा मरीज था गुजर गया मैं सब देख रहा था और टूट सा गया था लग भग 7 बजे आस पास वेंटीलेटर मशीन की आवाजें बन्द हो गई और मैं बाबू जी को देखते रह गया और सांसे बन्द हो गई मेरी आँख से आंसू सुख गए मां को भी नहीं कुछ कह पा रहा था बड़ी मुश्किल से अपने घर छोटे भाई को बताया अब बाबू जी नहीं रहे। बड़ी मुश्किल से अपने आपको सम्हाल पाया था। रातों रात रायपुर से घर के लिए निकल पड़े वह पल आज भी मुझे कभी कभी सोने नहीं देता। कितना मुश्किल है अपनों को आंखों से मृत्यु की सैया में जाते हुए देखना। 25 अक्टूबर 2018 मेरे जीवन का सबसे दुखत दिन है ।आज 25 अक्टूबर है यह दिन मुझे बहुत तड़पता है। बाबू जी (श्री त्रिलोचन लहरे ) आप बहुत याद आते हैं।
लक्ष्मी नारायण लहरे
तुलसी लहरे
Goldy Lahare